Tuesday, October 18, 2011

भारत माँ से एक मुलाकात


एक मीठे स्वर ने मुझे एक आवाज़ लगाई,
दूर मुझे एक वृद्धा लंगारती नज़र आई!
मुझे पास आते देख वो होले से मुस्कारी,
थपकिया दे के पास में वो मुझे बैठने को बुलाई!!

उसके चेहरे पर एक अजब सा तेज था,
सफ़ेद लहराते बालों का यौवन विशेष था!
तिरंगे में लिपटी वो मंद मंद मुस्कुरा rahi थी,
फिर भी देख लगा वो कही न कहीं कराह रही थी !!

मैंने पूछा माते क्यों अपने आप को क्यों सता रही हो,
अपने अश्रुओं को क्यों मुश्कुराहत से छुपा रही हो!
ऐसी क्या बात है मुझसे खुल कर कहो,
यूँ खुद से न लड़ो पर मुझे खुल कर कहो!!

वो बोली पुत्र क्या तुझे इतना नहीं समझ आता,
क्यों रो के भी मुस्कुरा रही तेरी अपनी माता!
बेटे यूँ न कहो की तुम खुद से ही अंजान हो,
सच है तेरे सामने और तुझे मेरा दर्द समझ न आता !!

हर रोज हरियाली को भूख में मुझे नंगा कर डालते हो,
विभिन्न सुविधा के लालच में इंसानियत कुचल डालते हो!
मेरे पुत्र हो सब पर किसी को किसी का ख्याल नहीं,
चंद रंगीनियत की खातिर मेरे सीने पे दंगा कर डालते हो !!

चाँद पे जाना है पर तुम्हे मेरा ख्याल नहीं,
शमशान बना डाला है मुझे सबका है हाल वही!
फेंकते हो आरोपों के शूल एक दूजे पे इस तरह,
देखते नहीं मैं जा रही हो रसताल में कहीं !!

आज हो इतने अंधे हो की मुझे भारत से इंडिया बना डाला,
मेरी सभ्यता मेरी सुन्दरता को विदेशी चश्मे से छल डाला1
भूल गयी मेरी सिखाई वो अवधि वो संस्कृत सारी मीठी भाषा,
बेच डाली मेरी विद्या मेरी शिक्षा मेरे कानो को बाला !!

थिरकते हो विदेशी तालों पे खुद के संगीत का मोल नहीं,
पहनते विदेशी खादी का कोई मोल नहीं!
और तो और खादी को अमेरिका और ब्रिटेन के पैरों में है गिरवी रख डाला,
मेरे शील मेरी सुन्दरता मेरी शौम्यता मेरी संप्रभुता का कोई तोल नहीं !!

भूल गए मेरे अंचल बचाने को हजारो वीर कुर्बान हुए,
कितने युवा कितने बच्चे कितने प्राण मुझपे निर्वाण हुए!
न ख्याल तुम्हे है गांधी का, ना नेहरू, ना सुभाष , ना भगत के बलिदान का,
ना मोल है तुम्हे स्वंतत्रता का ना उन माओं का जिनके कोख मेरे लिए वीरान हुए !!

कैसी है मेरी स्वंत्रता जब मैं भ्रस्टाचार में जकड़ी हूँ,
हर घडी रिशती हूँ जैसे बलिवेदी की बकरी हूं!
मर गयी हूं तुम्हारे तीक्छ्न वारो से,
वृधा  हो गयी हूं घुट घुट के तुम्हारे अत्याचारों से!!

ये किस बात का है जश्न किस बात का है शोर,
किस बात के है ये भाषण जब खींचते हो मेरे इज्ज़त के डोर!
मुट्ठी भर कपूतों ने मुझे है तार तार कर डाला है,
और तुम दूर बैठ देख रहे हो बस कह के की घर में घुसा है एक चोर !!

जागो  पुत्र माँ पे एक एहशान करो , 
मैंने सींचा  है बचपन  से तुम्हे उसका  कुछ  मान  करो!
जाकर  लड़ो  उन कपूतों  से जो  मुझे  हैं तार तार कर रहे,
दूध  का कर्ज  उतारो   और खुद के जीवन  पर अभिमान  करो !!

Obituary to My Best Friend Sumit

वहां बैठे बैठे कुछ इधर कुछ उधर किया करते थे,
छोटी छोटी बातों से बड़े सपने संजोया करते थे,
कभी सिक्के की थाप पे प्यार का इज़हार होता था,
कभी सुनहरी धुप में अथ्केलियों का हिसाब हुआ करता था,
कुछ धकियाते कुछ मुश्कुराते हम दिन को रात किया करते थे,
ऐ दोस्त याद है तुम्हे वहीँ नुक्कड़ पे हम चाय पिया करते थे !

सिलवटों में बिस्तर के न जाने कितने राज बताया करते थे,
कभी इसका कभी उसका कभी न जाने किसका किया करते थे,
कभी मुंडेर पे कभी छत पे पैमाना छलकता था,
कभी जगजीत कभी फ्लोयड में जमाना बहकता था,
कभी कंप्यूटर पे गाडिओं की दौड़ लगाया करते थे,
ऐ दोस्त याद है तुम्हे वहीँ नुक्कड़ पे हम चाय पिया करते थे !

न जाने कितनी रातें उन रातों की याद में बिताई हमने ,
भींगे पलको से तुम्हारी उन तस्वीरो को सीने से लगाया हमने,
कास वहां हम होते तो कुछ कर पाते,
तुझे खुदा से छीन लाने को हद से गुजर जाते,
कम्बक्थ दिल शाला आज भी धक् से रुक जाता है,
उन वक़्त की कंदराओं में आज भी सिमट जाता है,
वही कहीं हम एक दुसरे से आथ्खेलिआन किया करते थे,
ऐ दोस्त याद है तुम्हे वहीँ नुक्कड़ पे हम चाय पिया करते थे !

Obituary to My Beloved Mausi

अपने मुख से पहले मैंने आपको माँ पुकारा था,
जब अपनी गोद में रख आपने हर बार मुझे पुचकारा था,
खाता था आपके संग आपके संग मैं सोता था,
हँसता था आपकी गोद में आपकी गोद में रोता था ||

गालो पे हाथ रख आपके मुझे मीठे सपने आते थे,
आपके चहरे को देख मेरे गालो पे गड्ढे पर जाते थे,
नन्हे हाथों को पकड़ आप मुझे चलाना सिखाती थी,
मौसी अपमे ही तो मुझे मेरी माँ नज़र आती थी ||

लुढ़क लुढ़क के आपके पास मैं चल के जाता था ,
कभी आपसे लड़ता और आपसे माँ भी जाता था,
आप मुझे महाराजा के रसगुल्ले खिलाती थी,
मुझे गोद में बिठा अनगिनत लोरिया कहानियाँ सुनाती थी ||

आपने प्यार से मुझे अश्विनी नाम दिया था ,
उस नाम को मैंने आपके कारण पहचान बना रखा है ,
आज भी आपकी याद में आसुओं को नयनो में छुपा रखा है,
याद है मुझे जब आप मुझे हाथ पकड़ चलाना सिखाती थी,
मौसी अपमे ही तो मुझे मेरी माँ नज़र आती थी ||

Lone Remembrance

ज़िन्दगी बीत गयी तेरे इंतज़ार में पर तू न आई,
आज भी भींच रखा है हाथों में अपने,
जिसमे है तेरी खुशबू समाई ,
पहली बारिश में जो हमने साथ बिताया था,
वो अधुरा चन्द्रमा जिसके सामने,
तुने मुझे सीने से लगाय्द था,
याद है मुझे वो बेल की फूलों से तुम्हरे केश संवारना,
वो तुम्हे बस होले से बिस्तर पे बिठाना,
और घंटो तक निहारना,
अपने बाजूं में उठा तुम्हे यूँ धीरे धीरे चलना,
वो तुम्हारा मुझे बहोने में जकड़ना,
फिर धीरे धीरे मचलना,
आज भी परे है सूखे पन्ने में लिखी तेरी प्रेम कहानी,
वो छोटे छोटे जज्बात ओर मुश्कुराते अल्फाज,
ओर उन्ही पन्नो में सूखे फूल है तेरे प्यार की निशानी,
स्वांस लूं या गिनूं अपनी धड़कन,
हर पल बसी है तू मेरे कण कण में ,
बन के मेरा जीवन,
है मोल क्या मेरे जीवन का अगर तू नहीं है पास मेरे,
है कौन मेरा अपना यहाँ सिवा तेरे,
पर समझ नहीं आता क्यों दूर चली गयी तू मुझसे,
ऐसी थी क्या खता मेरी है क्यों तेरी ऐसी रुसवाई,
आज भी भींच रखा है हाथों में अपने,
जिसमे है तेरी खुशबू समाई ,
ज़िन्दगी बीत गयी तेरे इंतज़ार में पर तू न आई,