एक मीठे स्वर ने मुझे एक आवाज़ लगाई,
दूर मुझे एक वृद्धा लंगारती नज़र आई!
मुझे पास आते देख वो होले से मुस्कारी,
थपकिया दे के पास में वो मुझे बैठने को बुलाई!!
उसके चेहरे पर एक अजब सा तेज था,
सफ़ेद लहराते बालों का यौवन विशेष था!
तिरंगे में लिपटी वो मंद मंद मुस्कुरा rahi थी,
फिर भी देख लगा वो कही न कहीं कराह रही थी !!
मैंने पूछा माते क्यों अपने आप को क्यों सता रही हो,
अपने अश्रुओं को क्यों मुश्कुराहत से छुपा रही हो!
ऐसी क्या बात है मुझसे खुल कर कहो,
यूँ खुद से न लड़ो पर मुझे खुल कर कहो!!
वो बोली पुत्र क्या तुझे इतना नहीं समझ आता,
क्यों रो के भी मुस्कुरा रही तेरी अपनी माता!
बेटे यूँ न कहो की तुम खुद से ही अंजान हो,
सच है तेरे सामने और तुझे मेरा दर्द समझ न आता !!
हर रोज हरियाली को भूख में मुझे नंगा कर डालते हो,
विभिन्न सुविधा के लालच में इंसानियत कुचल डालते हो!
मेरे पुत्र हो सब पर किसी को किसी का ख्याल नहीं,
चंद रंगीनियत की खातिर मेरे सीने पे दंगा कर डालते हो !!
चाँद पे जाना है पर तुम्हे मेरा ख्याल नहीं,
शमशान बना डाला है मुझे सबका है हाल वही!
फेंकते हो आरोपों के शूल एक दूजे पे इस तरह,
देखते नहीं मैं जा रही हो रसताल में कहीं !!
आज हो इतने अंधे हो की मुझे भारत से इंडिया बना डाला,
मेरी सभ्यता मेरी सुन्दरता को विदेशी चश्मे से छल डाला1
भूल गयी मेरी सिखाई वो अवधि वो संस्कृत सारी मीठी भाषा,
बेच डाली मेरी विद्या मेरी शिक्षा मेरे कानो को बाला !!
थिरकते हो विदेशी तालों पे खुद के संगीत का मोल नहीं,
पहनते विदेशी खादी का कोई मोल नहीं!
और तो और खादी को अमेरिका और ब्रिटेन के पैरों में है गिरवी रख डाला,
मेरे शील मेरी सुन्दरता मेरी शौम्यता मेरी संप्रभुता का कोई तोल नहीं !!
भूल गए मेरे अंचल बचाने को हजारो वीर कुर्बान हुए,
कितने युवा कितने बच्चे कितने प्राण मुझपे निर्वाण हुए!
न ख्याल तुम्हे है गांधी का, ना नेहरू, ना सुभाष , ना भगत के बलिदान का,
ना मोल है तुम्हे स्वंतत्रता का ना उन माओं का जिनके कोख मेरे लिए वीरान हुए !!
कैसी है मेरी स्वंत्रता जब मैं भ्रस्टाचार में जकड़ी हूँ,
हर घडी रिशती हूँ जैसे बलिवेदी की बकरी हूं!
मर गयी हूं तुम्हारे तीक्छ्न वारो से,
वृधा हो गयी हूं घुट घुट के तुम्हारे अत्याचारों से!!
ये किस बात का है जश्न किस बात का है शोर,
किस बात के है ये भाषण जब खींचते हो मेरे इज्ज़त के डोर!
मुट्ठी भर कपूतों ने मुझे है तार तार कर डाला है,
और तुम दूर बैठ देख रहे हो बस कह के की घर में घुसा है एक चोर !!
जागो पुत्र माँ पे एक एहशान करो ,
मैंने सींचा है बचपन से तुम्हे उसका कुछ मान करो!
जाकर लड़ो उन कपूतों से जो मुझे हैं तार तार कर रहे,
दूध का कर्ज उतारो और खुद के जीवन पर अभिमान करो !!
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